Friday, August 7, 2009

दीपक की महत्ता


तेल है हमारा अहम् तो बाती है हमारी कुरूपता,
दीपक जलाकर समर्पण करो, अपने भीतर छिपी अज्ञानता I
नमन कर, शीश झुकाओ, चरण पडो परम ब्रह्म के ,
एक अकेले वह ही है जो हैं पालन करता इस जगत के I
हाथ जोड़े जब तुम करो प्रार्थना कोमल निश्चल मन से ,
पाओगे तुम अनंत आनंद विब्भिन्न जीवन के रस से I
प्रातः हो या संध्या काल , दीपक जलाओ श्रद्धा से ,
अपनी आत्मा को मुक्त करो अहंकारी शरीर से इ
जीवन पर प्रभाव न पड़े मोह माया के जाल का ,
करो साक्षात्कार अपने भीतर बसने वाले ब्रह्म का I
अंधियारे को दूर कर भरो उजियाला जीवन में ,
सुख, समृद्धि अरे प्रेम पाओ हर पल अपने जीवन में I

1 comment:

  1. cudnt make out most of it.... prat kya hai...but read hindi after a long while....i guess its pretty gud ?????..keep writing(read nt in hindi)

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