My first ever visit to Punjab- it was perhaps the best week of my life. I met complete strangers who eventually became family to me. The following piece describes my emotional journey to the land of the 5 rivers and expresses my feelings in simple words...
मंज़िल थी अनजानी सी बेगाना था सफ़र...
वोह जो भी था हसीं था मगर I
लगता था हर पल कुछ नया नया सा...
पाकर उसे था मैंने पाया एक खूबसूरत सा जहाँ I
बस दो कदम चलते चलते....
बस दो कदम चलते चलते
मैं पहुँच गयी अपनी पहली मंज़िल तक,
जहाँ मिले कुछ अनजान लोग;
जो बन गए मेरे अपनों से भी अपने I
बस दो कदम चलते चलते.....
बस दो कदम चलते चलते
मैं मिली कुछ मासूम लोगों से,
जिनकी आखों में मैंने देखा अपने लिए एक दरवाज़ा I
दरवाज़ा खोला तो देखा मैंने एक कमरा... जो था उनका दिल I
दिल में क़ैद कर लिया उन्होंने मुझे I
बस दो कदम चलते चलते...
बस दो कदम चलते चलते
आया एक ऐसा मक़ाम,
कहना था मुझे उन अपनों को अलविदा...
आँखें थी नाम दिल था ख़ाली ख़ाली सा,
मगर दिल को था यकीन उनसे मुलाक़ात होगी दोबारा I
बस दो कदम चलते चलते.....
बस दो कदम चलते चलते
चल पड़ी एक नयी मंज़िल की ओर,
जहाँ मिला एक प्यारा सा भैइया,
जिसने किया अपनी दुनिया में मुझे शामिल;
बनाया मुझे अपने घर का हिस्सा
बस दो कदम चलते चलते....
बस दो कदम चलते चलते
एक और भाई मिला मुझे,
प्यार से बुलाया जिसने मुझे पगली,
हक से हक जताया मुझपे I
कर दिया मुझे कमज़ोर अपने बेशुमार प्यार से I
बस दो कदम चलते चलते....
बस दो कदम चलते चलते
पहुँच गयी एक ऐसी राह में,
जो जानी पहचानी सी थी I
एक तरफ देखा मेरे अपने थे, दूजी तरफ देखा तो भी मेरे अपने थे I
दिल ने कहा मुझे की चल पड़ आगे आगे...
पर क्या करती मैं लाचार ?
लकीर थी राह में...
सोचा मैंने की पार लगाऊं...
मगर कैसे ?
काश वोह लकीर न होती तो चल पड़ती लाहौर घूमने....
भर गयी आँखें रोने लगा दिल रुक गए कदम...
बस दो कदम चलते चलते....
Thursday, August 6, 2009
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lovely poem and pain of not able to see a part of india pre 1947 .the beautiful city of lahore which in those times as paris of east .and the emotions xpressed therin for land of 5 rivers -
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